hindisamay head


अ+ अ-

कविता

आदमी की डूब

स्कंद शुक्ल


प्रलय का सारा पानी ध्रुवों पर जमा है
आदमी अपने-आप में पूरा डूब सकता है
उसके भविष्य और अतीत के दोनों सिरे
अगर ताप से पिघलने लगें तो।
आदमी को गुजर-बसर करने के लिए
जमीनी होना पड़ेगा
आगे-पीछे की घुसपैठें रोकनी होंगी
छमाही रातों-दिनों के ठंडे मौसम में
पिघलन से अपने-आप को बचाये रखना होगा
करनी होगी हर उच्छ्वास को गिन-गुनकर छोड़ने की कोशिश
वरना आज में दोनों कलों की बाढ़ में
इंसानियत अपनी मिट्टी संग समा जाएगी।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में स्कंद शुक्ल की रचनाएँ